मैं क़तरा होकर भी तूफ़ाँ से जंग लेता हूँ
मुझे बचाना समंदर की ज़िम्मेदारी है.
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मतयह
इक चिराग़ कई आँधियों पे भारी है.
वसीम बरेलवी
कुछ रोज़ से हम सिर्फ़ यही सोच रहे हैं
अब हम को किसी बात का ग़म क्यों नहीं होता
शहरयार
मैं दुनिया के मेयार पे पूरा नहीं उतरा
दुनिया मेरे मेयार पे पूरी नहीं उतरी.
मैं झूठ के दरबार में सच बोल रहा हूँ,
हैरत है कि सर मेरा क़लम क्यों नहीं होता.
मुनव्वर राना
इक अमीर शख़्स ने हाथ जोड़ के पूछा एक ग़रीब से
कहीं नींद हो तो बता मुझे कहीं ख़्वाब हों तो उधार दे.
आग़ा सरोश
Friday, August 22, 2008
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2 comments:
बहुत ही सुंदर.
कुछ रोज़ से हम सिर्फ़ यही सोच रहे हैं
अब हम को किसी बात का ग़म क्यों नहीं होता
शहरयार
ji ye sher munawar rana saheb ka hai n ki shaharyaar saheb ka ....
badi mazrat ke sath
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