Tuesday, January 22, 2008

तुमसे कैसा नाता है.

हमारी हर कहानी में, तुम्हारा नाम आता है.
ये सबको कैसे समझाएँ कि तुमसे कैसा नाता है.

ज़रा सी परवरिश भी चाहिए, हर एक रिश्ते को,
अगर सींचा नहीं जाए तो पौधा सूख जाता है.

ये मेरे ग़म के बीच में क़िस्सा है बरसों से
मै उसको आज़माता हूँ, वो मुझको आज़माता है.

ख़ुदा का खेल ये अब तक नहीं समझे कि वो हमको
बनाकर क्यों मिटाता है, मिटाकर क्यूँ बनाता है.

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